The Train... beings death 17
"ये सब मेरी ही वजह से हुआ है.. मुझे उन सब का साथ ही नहीं देना चाहिए था। मुझे नहीं पता था कि इतने बरसों के बाद भी वो यहां आकर ये सब कर सकते हैं।"
ये सुनते ही नीरज एकदम से शाॅक्ड हो गया।
"ये सब क्या है..? किसकी वजह से ये सब हुआ और क्या मतलब है इस सबका..? कौन है ये जिसे इन सभी होने वाली घटनाओं के बारे में जानकारी है?" नीरज दरवाज़े पर ही खड़ा हुआ हैरान परेशान सा सोच में डूबा हुआ था।
नीरज ने बिना वक्त गंवाये इंस्पेक्टर कदंब को कॉल लगाया और एक ही साँस में पूरी बात जो उसने सुनी थी.. अक्षरशः सुना दी.. हर एक शब्द वैसा ही था जैसा उसने कमरे में जाते समय सुना था। इंस्पेक्टर कदंब ने फोन पर नीरज को कुछ हिदायतें देकर कॉल काट दिया। नीरज किंकर्तव्यविमूढ़ सा बस मोबाइल हाथ में पकड़े हुए ही थोड़ी देर तक वहीं खड़ा रहा।
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अगले दिन चिंकी के पेरेंट्स अनन्या और अरविंद ने उसे काउंसिलर के पास ले जाने का सोचा.. उन्होंने चुपचाप काउंसिलर से बात भी की और उसने शाम को मिलने का टाइम दिया लेकिन साथ ही काउंसिलर को चिंकी को कुछ भी बताने के लिए मना भी लिया। क्योंकि चिंकी के पापा अरविंद भी डॉक्टर ही थे तो काउंसिलर को अरविंद का फ्रेंड बता कर ही चिंकी से मिलवाने वाले थे। काउंसिलर से वो लोग उसके ऑफिस में ना मिलकर वो उसके घर पर मिलने वाले थे।
शाम 7 बजे वो लोग काउंसिलर के घर के बाहर थे। अरविंद ने काउंसिलर को कॉल करके अपने आने के बारे में जानकारी दी।
"हैलो डॉक्टर..!! हम आपके घर के बाहर ही खड़े हैं.. चिंकी भी आपसे मिलना चाहती थी तो उसे भी साथ ही ले आए हैं।" ये बात उन्होंने चिंकी को सुनाते हुए कही।
चिंकी अपनी उम्र के बच्चों से काफी ज्यादा समझदार और इंडिपेंडेंट बच्ची थी.. उससे कुछ भी छुपाना लगभग नामुमकिन ही होता था इसीलिए उससे कुछ ऐसी ही बातें बनानी पड़ती थी ताकि उसे किसी भी तरह का कोई भी शक नहीं हो।
जल्दी ही डॉक्टर धीरज.. जो कि काउंसिलर थे उन्हें लेने के लिए दरवाजे पर पहुँच गए।
काउंसिलर डॉक्टर धीरज का घर बहुत बड़ा तो नहीं था..बस नॉर्मल मिडल क्लास लोगों के घर जैसा ही घर था उनका। उन्होंने अपने घर के ही एक हिस्से को अपना ऑफिस बनाया हुआ था। जहां वो शाम को उन लोगों से मिलते थे.. जो काउंसिलर की फीस अफोर्ड नहीं कर पाते थे और उन्हें मेडिकल हेल्प की जरूरत होती थी। चिंकी कोई साधारण केस नहीं थी इसीलिए उन्होंने घर पर मिलने के लिए बुलाया था।
डॉक्टर धीरज का ऑफिस किसी डॉक्टर के केबिन की तरह ना होकर एक घर की बैठक के जैसा ही था।
एक नॉर्मल 12 बाई 15 का कमरा जिसकी दिवारें सफेद रंग की थी.. और उसपर कुछ विशेष चित्र बनाए गए थे। चूंकि वो एक मनोचिकित्सक थे इसलिए ऐसे चित्रों का प्रयोग वो अपने मरीज़ों की मानसिक स्थिति को जानने के लिए करते थे। हॉल के सेंटर में एक बड़ा सा सोफा सेट रखा था और उसके आगे एक सेंटर टेबल। सेंटर टेबल पर कुछ प्लेन पेपर्स, कुछ कलर पेंसिल्स, पज़ल्स और कुछ माइंड गेम्स रखे हुए थे.. जो उन्हीं की थेरेपी का ही एक हिस्सा थे।
डॉक्टर धीरज ने उन्हें चाय कॉफी ऑफर की और चिंकी से बातें करने लगे। बातों ही बातों में उन्होंने ट्रेन और उससे जुड़ी सभी घटनाओं के बारे में जानकारी प्राप्त कर ली। वो भी ऐसे के चिंकी को किसी भी तरह का कोई भी शक ना हो।
"तुम तो बहुत ही ब्रेव हो चिंकी..! मैं तुम्हारी जगह होता तो इतना कुछ नहीं कर सकता था।" धीरज ने चिंकी से बातें करने और उसके मन की बातें जानने की गरज से कहा।
"ब्रेव तो मैं हूँ ही अंकल..!! पता है मैं पूरा एक दिन उस ट्रेन में स्पेन्ड कर के बिल्कुल ठीक ठाक वापस आई हूँ। और पता है.. मेरी एक फ्रेंड भी बनी है उस ट्रेन में.. प्रिया। वो उसी ट्रेन में रहती हैं.. अपने पेरेंट्स के साथ।"
चिंकी ने एक्साइटेड होकर बोलना शुरू किया तो ट्रेन में चढ़ने से लेकर उसके वापस आने तक की सारी बातें विस्तार से बताती चली गई।
"और ऐसे ही चलते चलते मैं पुलिस अंकल मुझे मिल गये और उन्होंने मुझे घर छोड़।" चिंकी ने ये कहते हुए अपनी पूरी राम कहानी सुना दी।
डॉक्टर धीरज भी अज़ीब अज़ीब से फेसेज् बनाते हुए चिंकी की बातें सुन रहे थे। फेसेज् बनाने का रीजन ये था कि चिंकी को ये ना लगे के उसकी बात में कोई इंट्रेस्ट नहीं।
चिंकी की सारी बातें सुनने के बाद धीरज ने एक शांति की साँस ली और अरविंद से कहा, "अरविंद..!! मुझे लगता है कि चिंकी को शायद ट्रॉमा हुआ है.. जिसकी वजह से ही उसे ये सपने आ रहे हैं। कुछ दिन शांति से सो लेगी तो सपने भी आना बंद हो जाएंगे। मैं कुछ दवाइयाँ लिख देता हूँ.. आप टाइम से देते रहना और कुछ प्रॉब्लम हो तो मुझे एनी टाइम कॉल कर सकते हैं। नेक्स्ट वीक आप चिंकी को मुझे दिखाने ले आइयेगा।"
"ओके... धीरज..!! अब चलते हैं.. थैंक्स।" अरविंद ने कुर्सी से उठते हुए हाथ मिलाकर कहा। अरविंद के बोलते ही अनन्या और चिंकी भी कुर्सी छोड़कर खड़े हो गए।
"बाय अंकल..!!" चिंकी ने खुश होते हुए कहा।
"बाय..!!" धीरज ने चिंकी की तरफ वेव करते हुए कहा।
अनन्या, अरविंद और चिंकी अपनी कार में बैठकर अपने घर आ गए। अरविंद उन्हें घर छोड़कर हॉस्पिटल के लिए निकल गए।
चिंकी और अनन्या ने पूरे दिन टीवी देखा, गेम्स खेले, गार्डनिंग की और रात के लिए डिनर भी साथ मिलकर बनाया। वो दोनों डिनर के लिए अरविंद का वेट कर रहे थे। हॉस्पिटल में एक एमरजेन्सी के कारण अरविंद को देर होने वाली थी इसीलिए अरविंद ने कॉल करके उन्हें खाना खा कर सो जाने के लिए बोल दिया था।
अनन्या ने चिंकी को खाना खिलाकर दवाई दे दी थी। और अब वो उसे रूम में सुलाने के लिए ले गई थी।
सोते समय चिंकी कहानियां सुनने की जिद करने लगी।
"मां स्टोरी सुना दो ना..! प्लीज... प्लीज..!!"
"ठीक है..! आंखे बंद कर के यहाँ लेटो.. मैं तुम्हें स्टोरी सुनाती हूं। आज मैं आपको एक लिटिल प्रिंसेस की स्टोरी सुनाती हूं।"
चिंकी ने आंखे बंद कर ली और चुपचाप स्टोरी सुनने लगी। अभी कहानी पूरी भी नहीं हुई थी कि चिंकी को नींद आ गई थी तो अनन्या उसका सर चूम कर कमरे में नाइट बल्ब जलाकर बाहर चली गई।
आधी रात को चिंकी को फिर से वहीं सपना दिखाई दिया.. जिसके कारण उसे डॉक्टर धीरज के पास लेकर गए थे। धीरे-धीरे यही सपना चिंकी को रोज ही आने लगा था।
लगभग एक महीना बीत गया था.. पर चिंकी को वहीं सपना रोज ही आ रहा था। दवाइयों और थेरेपी का भी कोई असर नहीं पड़ रहा था। इस बात से अरविंद और अनन्या दोनों ही काफी परेशान रहने लगे थे। चिंकी वैसे तो दिनभर ठीक रहती थी लेकिन कई बार वो "प्रिया मैं आ रही हूँ.. मैं तुम्हारी हेल्प जरूर करूंगी।" बोलकर नींद से जाग जाती।
एक दिन चिंकी अकेली कमरे में सो रही थी.. अब की बार चिंकी को कोई सपना नहीं दिखा बल्कि प्रिया खुद से उससे मिलने आई थी। इस टाइम चिंकी पूरी नींद में भी नहीं थी और ना ही जाग रही थी। चिंकी प्रिया को मिलने आया देख बहुत खुश हो गई थी।
"प्रिया..!! तुम सच में हो ना..!! तुम मुझसे मिलने आई हो।" चिंकी ने एक्साइटेड होकर पूछा।
"मुझे तुम्हारी हेल्प चाहिए थी.. चिंकी..!!" प्रिया ने परेशान होकर कहा।
"मेरी हेल्प..!! क्या हेल्प चाहिए बताओ मैं जरूर हेल्प करूंगी। तुमने मेरी कितनी हेल्प की थी जब मैं ट्रेन में फंस गई थी। अब तुम्हें हेल्प चाहिए तो मैं मना क्यों करूंगी।" चिंकी ने मदद का आश्वासन देते हुए कहा।
"बताओ क्या मदद करनी होगी..??" चिंकी ने पूछा।
"वो मैं तुम्हें बता दूंगी.. पर पक्का ना कहीं बाद में मना कर दो।" प्रिया ने अपनी आशंका जताई।
"हम फ्रेंड्स है ना.. तो मना क्यों करूंगी। मैं गॉड प्रोमिस करती हूं.. जो भी हेल्प तुम्हें चाहिए होगी.. मैं करूंगी।" चिंकी ने अपनी बात पर दिलासा दिलवाने की गरज से कहा।
"तो ठीक है..! दो दिनों के बाद मैं तुम्हें लेने आऊंगी.. तुम्हें मेरे साथ चलना होगा। मैंने सब कुछ देख लिया है.. हम ट्रेन का ऐसे आना जाना बंद करवा सकते हैं और तो और इससे सभी की जान भी बचेगी। पता है कितने सारे लोग.. बिना जाने उस ट्रेन में चढ़ जाते हैं और मर जाते हैं।" प्रिया ने कहा।
"हाँ..!! ये तो है.. सभी मेरे जितने लकी तो नहीं होते ना जिन्हें तुम्हारे जैसी फ्रेंड मिले जो उनकी जान बचा पाए।" चिंकी की बातों में प्रिया के लिए कृतज्ञता थी।
"अब मैं चलती हूं..!! और हाँ..! किसी को भी मत बताना कि तुम मेरी हेल्प करने वाली हो.. नहीं तो सभी मना कर देंगे।" प्रिया ने चिंकी को अपना डर बताया।
"कोई मना नहीं करेगा..! लेकिन तुम मना करती हो तो किसी को भी कुछ नहीं बताऊंगी.. ठीक है।" चिंकी ने कहा।
चिंकी के आश्वासन देने पर प्रिया वहां से चली गई और चिंकी की आंख खुल गई।
चिंकी ने डिसाइड कर लिया था कि प्रिया के बारे में किसी को भी कुछ नहीं बताएगी। सब कुछ नॉर्मल ही चल रहा था। एक रात पहले अरविंद को किसी इमरजेंसी की वजह से हॉस्पिटल में ही रुकना पड़ा था तो वो सुबह सुबह ही घर लौटे थे।
चिंकी जब सुबह उठ कर अपने कमरे से बाहर निकली तो अरविंद और अनन्या हॉल में बैठकर चाय पी रहे थे और रात को आए इमरजेंसी केस के बारे में ही बात कर रहे थे।
"पता है कुछ दिन पहले एक हार्ट अटैक का केस आया था..!! कुछ अजीब ही बड़बड़ा रहा था कि ...ये सब मेरी ही वजह से हुआ है.. मुझे उन सब का साथ ही नहीं देना चाहिए था। मुझे नहीं पता था कि इतने बरसों के बाद भी वो यहां आकर ये सब कर सकते हैं।" अरविंद ने कहा।
ये सुनकर अनन्या को कुछ अलग सी फिलिंग आई थी।
"फिर..! फिर क्या हुआ..??" अनन्या को उस बारे में और भी ज्यादा जानने की उत्सुकता हो रही थी।
"फिर क्या.. यही बोलते बोलते उनकी हालत बिगड़ गई थी.. बाईपास हुआ है और पेसमेकर लगा है।" अरविंद ने अफसोस जताते हुए कहा।
"पता चला कि हार्ट अटैक क्यों आया था..??" अनन्या ने आगे पूछा।
"उनकी पोती लक्ष्मी के साथ बड़ा ही बुरा हुआ था। उसी की वजह से उन्हें अटैक आया था।" अरविंद ने कहा।
"यार तुम पहेलियाँ ना बुझाओ साफ़ साफ़ बोलो हुआ क्या था..!" अनन्या ने इरिटेट होकर कहा।
"उनकी पोती रात को गायब हो गई थी और सुबह स्टेशन के पास बुरी हालत में मिली.. उसके बाद उसे किसी स्पेशल हॉस्पिटल में एडमिट करवाया था.. जहां उसने एक अजीब से बच्चे को जन्म दिया था और उसी बच्चे की वजह से उसकी जान चली गई। इसी बात का सदमा लगा उन्हें और उन्हें हार्ट अटैक आ गया।" अरविंद ने अपनी बात खत्म करते हुए कहा।
"ओह..! फिर तो बहुत ही बुरा हुआ।" अनन्या ने अपनी सम्वेदना व्यक्त की।
चिंकी ने ये सब सुना तो उसे समझ आ गया कि इस सब के पीछे ट्रेन का ही कोई लेना-देना है। अब चिंकी ने प्रिया की मदद करने का पूरा मन बना लिया था और इसमें जो भी जरूरी था उसकी तैयारियां करना भी शुरू कर दिया।
ठीक दो दिनों के बाद रात के 1 बजे जब ट्रेन के आने का टाइम हो रहा था.. तब चिंकी अपने कमरे में सोई हुई थी।
"चिंकीऽऽऽ..!! चिंकीऽऽऽऽ...!!"
किसी के फुसफुसाहट से आवाज़ लगाने जैसी आवाज़ आई। वो आवाज़ ऐसी थी जैसे कोई दर्द में फंसा आदमी किसी को मदद के लिए पुकारता है तब होती है।
"चिंकीऽऽऽऽ..!! चिंकीऽऽऽऽ...!!" फिर से आवाज़ आई।
"सोने दो ना मम्मी..!! अभी देखो सुबह भी नहीं हुई है।" चिंकी अलसाते हुए करवट बदल कर वापस सो गई।
"मैं हूँ..!! प्रिया..!! उठो.. हमें जाना हैं..!! जल्दी करो ट्रेन निकल गई तो गड़बड़ हो जाएगी।" प्रिया ने फुसफुसा कर कहा।
"ओह..!! सॉरी.. सॉरी..!! मैं भूल गई थी। चलो मैं तैयार हूँ..!!" चिंकी ने कहा और बिस्तर छोड़कर उठ खड़ी हुई।
"रुको..!! रुको..!!" चिंकी ने चलते हुए एकदम से रुकते हुए कहा।
"अब क्या हुआ..?? चिंकी हमारे पास टाइम नहीं है..??" प्रिया ने परेशान होते हुए कहा।
"कुछ सामान लेना था.. रास्ते में काम आएगा..!!" बोलकर जल्दी जल्दी कुछ सामान अपने छोटे से बैग में रखना शुरू कर दिया। जल्दी ही सामान समेटकर प्रिया के साथ बाहर निकल गई।
"यहाँ से नहीं..!! पीछे के रास्ते से जाएंगे ताकि किसी को पता ना चले। नहीं तो.. सुबह सुबह ही पुलिस अंकल हमें ढूंढने लगेंगे।" चिंकी ने प्रिया का हाथ पकड़कर रोकते हुए कहा।
चिंकी प्रिया का हाथ पकड़ कर पीछे वाले दरवाज़े के पास ले गई और दोनों चुपके से बाहर निकल कर चल दिये।
दोनों ही जल्दी जल्दी स्टेशन की तरफ चल पड़े.. इससे पहले कि किसी को प्रिया के वहां न होने के बारे में पता चले और कुछ उल्टा सीधा हो.. उन्हें ट्रेन में पहुंचना ही चाहिए.. ये सोचकर दोनों हवा से भी तेज दौड़ रहे थे।
जब वो लोग स्टेशन पहुँचें ट्रेन धीरे-धीरे चल चुकी थी.. जल्दी ही ट्रेन स्पीड पकड़ लेती और उन दोनों की पहुंच से दूर निकल जाती। चिंकी और प्रिया ने एक दूसरे की तरफ देख कर कुछ इशारा किया।
चिंकी ने एक जोर की साँस भरी और तेज़ी से ट्रेन की तरफ दौड़ लगा दी। प्रिया भी चिंकी के साथ-साथ ही दौड़ रही थी। चिंकी ने अपनी स्पीड थोड़ी और बढ़ाई और ट्रेन के दरवाज़े पर लगे हैंडल को पकड़ लिया। चिंकी एक ही झटके में ट्रेन में चढ़ गई.. प्रिया अभी भी स्टेशन पर ही ट्रेन को पकड़ने के लिए भाग रही थी। चिंकी ने एक हाथ बढ़ाया जिसे प्रिया ने फटाफट से पकड़ लिया और चिंकी की मदद से ट्रेन में चढ़ गई। जैसे ही प्रिया ट्रेन में चढ़ी.. ट्रेन ने गति पकड़ ली और पलक झपकते ही स्टेशन से निकल कर ना जाने किस रास्ते पर दौड़ते हुए गायब हो गई।
प्रिया और चिंकी ने ट्रेन में चढ़कर राहत की साँस ली। दोनों ही समय से ट्रेन में चढ़कर खुश थी क्योंकि अब जो वो चाहती थी.. आराम से पूरा कर सकती थी। ट्रेन में चढ़ने की भागदौड़ के कारण चिंकी की साँस फूल गई थी तो चिंकी एक बर्थ पर पैर फैलाकर लेट गई।
"तुम्हें बिल्कुल भी डर नहीं लग कि तुम इस भूतहा ट्रेन में फिर से चढ़ गई हो।" प्रिया ने चिंकी को परेशान करने और डराने के इरादे से पूछा।
"डर क्यूँ लगेगा..!! अरे भाई..! जब कोई भूतनी ही तुम्हारें साथ हो तो दूसरे भूत तो तुम्हारा कुछ भी नहीं बिगाड़ सकते।" चिंकी ने भी प्रिया को उसी की टोन में जवाब दिया।
चिंकी का जवाब सुनकर प्रिया जोरदार हंस पड़ी.. प्रिया को ऐसे हंसते देख कर चिंकी भी हंसने लगी। दोनों ही एक दूसरे को देखते हुए पेट पकड़कर हंस रही थी। लेकिन कब तक उनकी हंसी सलामत रहती.. ये तो वक्त ही बता सकता था क्योंकि जिस काम से प्रिया चिंकी को लेकर आई थी वो काम इतना आसान नहीं था।
अब तो वक्त और आने वाला स्टेशन ही बता सकता था कि आगे इनके साथ क्या होने वाला था। ट्रेन आगे बढ़ रही थी और साथ ही में ट्रेन की आत्माओं को चिंकी के आने की जानकारी मिल गई थी।
ट्रेन की आत्मायें चिंकी पर हमला करने के इरादे से एक जगह इकट्ठा हो गई थी। उन्हें चिंकी के कारण हुई उनके साथियों की दुर्दशा के बारे में पता चला था.. तभी से वो लोग चिंकी से बदला लेने की ताक में बैठे थे। और ये मौका जब उन्हें बैठे बिठाए मिल रहा था तो इसका फायदा पूरी तरह से उठाने की सोचकर तैयार थे।
चिंकी को धीरे-धीरे उन सभी के इरादों के बारे में पता चल रहा था। वो सभी बस उस समय चिंकी को मारने के बारे में सोच रहे थे। इसी गरज़ के कारण वो सभी उस स्थान पर चिंकी को मारने के लिए इकट्ठा हो हो गए थे। उन लोगों ने अपने अपने हथियार सम्भाल लिए थे।
जब चिंकी थोड़ी असावधान थी सबने मिलकर चिंकी पर हमला कर दिया। चिंकी भी सभी के इस अप्रत्याशित हमले के लिए तैयार थी और तो और चिंकी ने भी अपने आप को हमले का ज़वाब देने के लिए तैयार कर लिया था।
चिंकी ने अपने बैग में गंगाजल रखा हुआ था.. उसने कहीं पढ़ा था या कहीं से सुना था ये तो ठीक से याद नहीं.. लेकिन उसे यह ध्यान आया था कि गंगाजल से बुरी आत्मायें आपको कोई भी नुकसान नहीं पहुंचा सकती हैं। यही सोचकर चिंकी ने अपने साथ गंगाजल रखा था.. जो इस प्रकार काम आया था।
जैसे ही सभी आत्माओं ने चिंकी पर हमला किया चिंकी ने भी जवाबी कार्रवाई में गंगाजल उनपर छिड़क दिया.. जिससे सभी आत्मायें दर्द से चीखने लगी थी। उनकी दर्द भरी चीखें पूरी ट्रेन में गूंजने लगी थी। चीखें इतनी हृदय विदारक थी कि चिंकी और प्रिया भी उनके दर्द को महसूस कर रोने लगे थे। प्रिया के रोने का एक बड़ा कारण यह भी था कि उन सभी आत्माओं में प्रिया के मम्मी, पापा और भाई भी थे। वो भी सभी आत्माओं के साथ दर्द में थे।
कुछ देर तक उस गंगाजल के प्रभाव से सभी आत्मायें दर्द में थी लेकिन जल्दी ही उनका दर्द चला गया और उस दर्द की जगह एक असीम शांति ने ले ली।
सभी ने चिंकी को इस बात के लिए धन्यवाद दिया और उससे सभी की मुक्ति का रास्ता निकालने की भी विनती की।
"चिंकी बेटा..!! तुम्हारें ही कारण हमें आज थोड़ी सी शांति मिली है.. अब बस हमारा इतना सा काम कर दो कि हमारी मुक्ति का भी कोई रास्ता निकाल दो।" सभी आत्माओं ने हाथ जोड़कर समवेत स्वर में विनती की।
"ठीक है..!! मैं आपकी मुक्ति के लिए हर संभव प्रयास करूंगी.. लेकिन आप सभी को भी इस काम में मेरी मदद करनी होगी।" चिंकी ने सभी में जोश भरते हुए कहा।
"हम सभी तुम्हारी इस काम में मदद करेंगे..!!" सभी आत्माओं ने कहा।
"तो ठीक है..!! मैं आप सबको बताती हूं कि आप सभी को करना क्या है।" चिंकी ने कहा।
चिंकी ने इतना कहा और अपनी आगे की योजना में सभी को उनकी भूमिका बताई। ये योजना चिंकी ने उसी समय बना ली थी जब प्रिया चिंकी से उनकी मदद के लिए मिलने आई थी।
सभी आत्मायें चिंकी की योजनानुसार अपने अपने काम में लग गई थी। चिंकी भी अब अगले स्टेशन पर क्या होने वाला था इसी सोच में डूब गई थी।
कुछ ही देर बाद ट्रेन की सीटी की आवाज आई.. जिसका मतलब था कि अगला स्टेशन पास ही था। उस सीटी की आवाज से ही सभी आत्माओं की हलचल बढ़ गई थी।
क्रमशः...
Abhinav ji
05-Apr-2022 09:33 AM
Nice
Reply
Aalhadini
05-Apr-2022 06:34 PM
Thanks sir 🙏
Reply
Punam verma
27-Mar-2022 04:42 PM
👍👍
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🤫
03-Sep-2021 06:33 PM
हिम्मति और निडर चिंकी....वाह
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